टीवी पर्सनैलिटी और युवा आइकन शिव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को तीन महीने के भीतर पकड़कर बंदीगृहों मेंडालने के आदेश पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इसे भारत की न्याय व्यवस्था में चयनात्मक तत्परता का उदाहरण बताया।
शिव ने कहा: “मैं नहीं कह रहा कि ये आदेश पूरी तरह से गलत है — कोर्ट कुछ हद तक सही भी है। लेकिन हर काम करने का एक तरीका होता है।कोर्ट ने कहा कि तीन महीने के अंदर सारे कुत्ते पकड़ लिए जाएं, ये अच्छी बात है। लेकिन अगर कुत्ते तीन महीने में पकड़े जा सकते हैं, तो बलात्कारीऔर अपराधी भी पकड़े जा सकते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि हमारी कोर्ट और कानून ये भी कर सकते हैं। लेकिन ये जो आदेश पास हुआ है, वो एक ऐसेजानवर के लिए है जो बोल भी नहीं सकता”
11 अगस्त 2025 को पारित हुए इस आदेश को लेकर देशभर में तीखी बहस चल रही है। कई लोग मानते हैं कि सार्वजनिक सुरक्षा जरूरी है, लेकिनसवाल उठ रहा है कि क्या उतनी ही गंभीरता से बलात्कार, हत्या और अन्य गंभीर अपराधों को भी लिया जा रहा है?
शिव ने आगे कहा: “रैबीज़ और काटने की समस्या है — ये मैं मानता हूं। लेकिन उसी तरह बलात्कार, हत्या और दूसरे अपराध भी बड़े मुद्दे हैं।अपराधियों के पास तो अधिकार और विकल्प होते हैं, लेकिन कोर्ट ने सब छोड़कर एक बेज़ुबान जानवर के पीछे हाथ धोकर पड़ गई है।”
शिव ठाकरे ने भारतीय समाज में कुत्तों को लेकर मौजूद वर्गभेद पर भी सवाल उठाए: “डॉग लवर्स कई तरह के होते हैं। अमीरों के पालतू कुत्ते तो परिवारजैसे होते हैं। लेकिन गलियों में रहने वाले कुत्ते को 'नुकसानदेह' बोल देते हैं। पालतू कुत्ता ज़रूरी है, मगर सड़क का कुत्ता नहीं — यही सच्चाई है।”
शिव ने एक संतुलित और मानवीय दृष्टिकोण की वकालत करते हुए कहा: “उन्हें वैक्सीन दो, नसबंदी करवाओ, इंसानों के बीच जीने दो। हां, इंसानों केलिए भी जगह कम है — लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम इंसानियत ही भूल जाएं।”
रूपाली गांगुली समेत कई अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं और हस्तियों की तरह शिव ठाकरे भी अब इस विवाद में एक सशक्त आवाज बनकर उभरे हैं— जो सवाल उठा रही है कि कहीं हम अपनी संवेदनशीलता को उनपर तो नहीं निकाल रहे जो बोल नहीं सकते, जबकि असली अपराधी खुले घूम रहे हैं?