नेपाल में शुरू हुआ “Gen‑Z प्रदर्शन” अब राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता का रूप ले चुका है। इस आंदोलन की शुरुआत सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए बैन और भ्रष्टाचार के आरोपों के विरोध से हुई थी, लेकिन अब यह हिंसक बगावत में तब्दील हो चुका है।
घटनाक्रम और बढ़ती हिंसा
प्रदर्शनकारियों, ज्यादातर युवा, ने काठमांडू की सड़कों को घेर लिया और पास्टेबनिश्वर में संसद भवन के आसपास तोड़-फोड़ की। प्रदर्शन शांतिपूर्ण विरोध से हिंसक संघर्ष में बदल गए, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 19–22 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भवन, सुप्रीम कोर्ट, और मंत्रियों के आवासों पर भी आग लगाई।
— Reuters ने लिखा कि "प्रदर्शन का नेतृत्व जेनरेशन Z के युवा कर रहे थे, जो भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता से बेहद नाराज थे।"
— Financial Times ने बताया कि यह देश का "सबसे हिंसक आंदोलन" बन चुका है।([turn0news24])
राजनीतिक जगत में भूचाल
कुल मिलाकर, इस राजनीतिक भूकंप ने तत्काल परिणाम दिए:
सेना का हस्तक्षेप और शासन का अगला कदम
स्थिति नियंत्रण से बाहर जाने पर नेपाली सेना को सक्रिय किया गया और इलाकों में रात 10 बजे से कर्फ्यू लागू कर दिया गया। सेना ने चेतावनी दी कि अगर हिंसा जारी रही, तो वह पूरा नियंत्रण अपने हाथों में ले लेगी। इसके साथ ही, जनसंपर्क एवं सूचना निदेशालय ने उन समूहों को नसीहत दी जो स्थिति का गलत फायदा उठा रहे थे।([turn0news24])
— स्थानीय प्रशासन ने आशंका जताई कि कुछ गुट राजनैतिक अस्थिरता का लाभ उठा रहे हैं, आम नागरिकों और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
जेल से कैदियों की भागने की घटनाएं
महोत्तरी जिले की जलेश्वर जेल पर भी हमला हुआ, जिसमें 576 कैदियों के फरार होने की जानकारी सामने आई। वायरल वीडियो में कैदियों को भागते दिखाया गया है, जिससे कानून व्यवस्था की स्थिति कितनी बिगड़ी है, इसका अंदाजा होता है।
वर्तमान स्थिति में शांति की उम्मीद
कुछ राहत की खबर यह है कि सुबह होते ही काठमांडू में शांति की झलक दिखाई दी। सेना ने जनता से सहयोग की अपील की है और व्यवधानों को मिटाकर लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में काम करने का ऐलान किया।
National Human Rights Commission ने भी अत्यधिक बल प्रयोग को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया और सभी पक्षों से संयम की अपील की है।
निष्कर्ष
नेपाल में ‘Gen‑Z आंदोलन’ ने सोशल मीडिया पर अक्षमता और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवा नाराजगी को लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा की दिशा में मोड़ दिया है। इसके परिणाम स्वरूप पतनशील लोकतंत्र, सत्ता का पतन और समाज में उथल-पुथल दिखाई दे रही है।
सेना की भूमिका और प्रशासन का संयम इस समय में निर्णायक सिद्ध होगा। अगर शांति कायम रहने लगी तो देश फिर से स्थिरता की ओर बढ़ सकता है, लेकिन युवा वर्ग का निरीह संघर्ष सिर्फ सोशल मीडिया का विरोध नहीं, बल्कि बड़े राजनीतिक परिवर्तन की दहलीज साबित हो सकता है।