श्रीलंका की विदेशी निवेश नीति पर हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग की एक तीखी टिप्पणी सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि देश की नीतियां अनुचित, असंगत और बाधाओं से भरी हुई हैं। अमेरिका ने यह बात अपनी 2025 की "इन्कवायरमेंट फॉर इन्वेस्टमेंट" रिपोर्ट में कही, जो वैश्विक निवेशकों के लिए देशों की कारोबारी स्थिति का आकलन करती है। रिपोर्ट में विशेष रूप से भारतीय कंपनी अडाणी ग्रुप द्वारा श्रीलंका में प्रस्तावित 40 करोड़ डॉलर की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना से हाथ पीछे खींचने की घटना का उल्लेख किया गया है।
अडाणी की वापसी: एक चेतावनी संकेत
2023 से बातचीत के बाद अडाणी ग्रीन एनर्जी ने श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में 484 मेगावाट की पवन ऊर्जा परियोजना शुरू करने की योजना बनाई थी। समूह ने 8.26 सेंट प्रति यूनिट की प्रतिस्पर्धी दर पर टैरिफ प्रस्तावित किया था, वह भी अमेरिकी डॉलर में। हालांकि, श्रीलंका इस टैरिफ को अधिक मानते हुए इसे 5 सेंट से कम करने की मांग कर रहा था। यह प्रस्ताव व्यावहारिक नहीं था और अंततः अडाणी ने फरवरी 2025 में परियोजना से हटने का फैसला लिया।
अमेरिकी विदेश विभाग ने इस उदाहरण को श्रीलंका में कानूनी अनिश्चितता, नौकरशाही अड़चनें और नीतिगत अस्थिरता का प्रतीक बताया। रिपोर्ट में कहा गया कि निवेशकों को अकसर अनापेक्षित नीतिगत बदलावों, देरी से फैसलों, और बदलती हुई सरकारी प्राथमिकताओं का सामना करना पड़ता है।
निवेश माहौल: सुधारों की दरकार
हालांकि श्रीलंका 2022 के आर्थिक संकट से धीरे-धीरे उबर रहा है और 2024 में देश की GDP ग्रोथ दर 5% तक पहुंची है, पर निवेशकों के लिए माहौल अब भी संतोषजनक नहीं है। राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व में सरकार स्थिरता तो लेकर आई है, लेकिन NPP (नेशनल पीपुल्स पावर) गठबंधन का मार्क्सवादी और पश्चिम-विरोधी रुख निवेशकों के मन में संदेह पैदा करता है।
हालांकि श्रीलंका ने IMF के 3 बिलियन डॉलर के कार्यक्रम का समर्थन किया है और जनवरी 2025 में 3.7 बिलियन डॉलर की चीनी निवेश वाली सिनोपेक तेल रिफाइनरी को मंजूरी भी दी गई है, लेकिन घरेलू नीतियों की पारदर्शिता और स्थायित्व अब भी सवालों के घेरे में है।
अमेरिकी विदेश विभाग की सिफारिशें
रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका को निवेश आकर्षित करने के लिए चाहिए कि वह:
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नीतिगत पारदर्शिता बढ़ाए
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नियामकीय सुधारों को लागू करे
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व्यवसाय शुरू करने की प्रक्रिया आसान बनाए
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और BOI (Board of Investment) को सही मायनों में वन-स्टॉप शॉप की तरह विकसित करे।
अभी निवेश को मंजूरी देने में कई विभागों के बीच समन्वय की कमी के चलते महीनों लग जाते हैं, जिससे विदेशी निवेशक हतोत्साहित होते हैं।
निष्कर्ष
श्रीलंका को वैश्विक निवेश आकर्षित करने के लिए अपनी मौजूदा संरचनाओं और दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा। अडाणी जैसी बड़ी कंपनियों का पीछे हटना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि देश को नीतिगत स्पष्टता, विश्वसनीयता और तेज़ निर्णय प्रक्रिया की सख्त ज़रूरत है। अन्यथा, महत्वाकांक्षी FDI लक्ष्यों (2025 तक 5 अरब डॉलर) की पूर्ति मुश्किल हो सकती है। यदि श्रीलंका अपने निवेश माहौल को प्रतिस्पर्धी नहीं बना पाता, तो वह भारत और वियतनाम जैसे अधिक अनुकूल निवेश गंतव्यों से पीछे छूट सकता है।