हाल ही में अमेरिका में कराए गए कॉन्फ्रेंस बोर्ड सर्वे के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था तेज़ी से मंदी (Recession) की ओर बढ़ रही है। लोगों का उपभोक्ता विश्वास कमजोर हो रहा है, नौकरी के अवसर घट रहे हैं, और सरकार के अत्यधिक खर्च के कारण अमेरिका पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव के समय जहां फिजूलखर्ची रोकने और बजट संतुलन का वादा किया था, वहीं अब उनके कार्यकाल में अमेरिका का वित्तीय बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
तेजी से बढ़ता राष्ट्रीय कर्ज
अमेरिका पर हर दिन करीब 21 अरब डॉलर का कर्ज बढ़ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ 48 दिनों में अमेरिका पर 1 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 86 लाख करोड़ रुपये) से ज्यादा का नया कर्ज जुड़ चुका है। इससे अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार देश बन चुका है। मौजूदा समय में कुल कर्ज 37.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है, जो अमेरिका की आर्थिक स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
GDP से भी ज्यादा खर्च
सरकार अपनी वार्षिक जीडीपी का 44% खर्च कर रही है, जो कि दूसरे विश्व युद्ध और 2008 की आर्थिक मंदी के समय से भी अधिक है। कोरोना काल में यह खर्च 54% तक पहुंच गया था। यह अत्यधिक खर्च सरकारी योजनाओं, सब्सिडी और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में तो नजर आता है, लेकिन इससे राजकोष पर अत्यधिक दबाव बन गया है।
राजकोषीय घाटा भी रिकॉर्ड स्तर पर
केवल कर्ज ही नहीं, राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) भी लगातार बढ़ रहा है। 2025 में यह 1.63 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जो पिछले साल से 109 अरब डॉलर ज्यादा है। संभावना जताई जा रही है कि यह घाटा जल्द ही 2 ट्रिलियन डॉलर को पार कर सकता है। बीते एक साल में इसमें 7.4% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
जुलाई में खर्च और कमाई का अंतर
जुलाई 2025 में सरकार का खर्च 9.7% बढ़कर 630 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जबकि इसी अवधि में राजस्व (कमाई) सिर्फ 2.5% बढ़कर 338 अरब डॉलर रहा। इसमें भी लगभग 30 अरब डॉलर की आय टैरिफ (शुल्क) से हुई, जो बताता है कि सरकार की आय के स्रोत सीमित होते जा रहे हैं, जबकि खर्च बढ़ते जा रहे हैं।
घटता उपभोक्ता विश्वास
कॉन्फ्रेंस बोर्ड के मुताबिक, उपभोक्ता विश्वास सूचकांक अगस्त में 1.3 अंक गिरकर 97.4 पर आ गया, जो जुलाई में 98.7 था। इसके अलावा, आय, रोजगार और व्यापार से जुड़ा एक और सूचकांक 1.2 अंक गिरकर 74.8 पर पहुंच गया। यह स्पष्ट संकेत है कि आम नागरिकों का भरोसा अर्थव्यवस्था से उठता जा रहा है।
मंदी की आशंका और भविष्य की चिंता
अगर यह रुझान जारी रहता है, तो आने वाले महीनों में अमेरिका गंभीर आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकता है। गिरता उपभोक्ता विश्वास, बढ़ता कर्ज, घटती नौकरियां और राजकोषीय असंतुलन देश के सामने गहरा संकट खड़ा कर सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ट्रंप प्रशासन ने वित्तीय नीतियों में ठोस सुधार नहीं किया, तो आर्थिक अस्थिरता और गहराएगी।
निष्कर्ष:
अमेरिका आज आर्थिक मोर्चे पर कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। बढ़ता कर्ज, अनियंत्रित खर्च और घटता उपभोक्ता विश्वास इस ओर इशारा कर रहे हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था एक बार फिर मंदी के द्वार पर खड़ी है। सरकार के लिए यह समय ठोस निर्णय लेने और खर्च पर नियंत्रण पाने का है।