आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत, भारत सरकार देश में इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स की मैन्युफैक्चरिंग को लगातार बढ़ावा दे रही है. इस अभियान के सकारात्मक नतीजे भी देखने को मिले थे, जब वित्तीय वर्ष 2024 (FY24) में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स और प्रोडक्ट्स के आयात में कमी आई थी. लेकिन, वित्तीय वर्ष 2025 (FY25) में स्थिति बदल गई है, जो 'मेक इन इंडिया' (Make in India) पहल के लिए एक चिंताजनक संकेत है.
आयात बिल में भारी उछाल
ईटी (ET) की एक रिपोर्ट के अनुसार, Apple, Samsung, LG, Haier, Lenovo, Whirlpool और Motorola जैसी लगभग एक दर्जन प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने वित्त वर्ष 2025 में ₹1.21 लाख करोड़ रुपये से अधिक के कंपोनेंट्स और प्रोडक्ट्स का आयात किया है. यह आंकड़ा पिछले वित्तीय वर्ष 2024 की तुलना में $13\%$ से भी ज्यादा की बढ़ोतरी दर्शाता है.
यह जानकारी इन कंपनियों की नवीनतम रेगुलेटरी फाइलिंग (Regulatory Filings) से सामने आई है, जो उनके व्यापारिक संचालन की वित्तीय स्थिति को उजागर करती है.
बढ़ोतरी के कारण और मेक इन इंडिया की चुनौती
इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि आयात बिल में इस बड़े उछाल के मुख्य रूप से दो कारण हैं:
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महंगे पार्ट्स का ज्यादा आयात (Import of Expensive Parts): हाई-एंड इलेक्ट्रॉनिक्स, जैसे कि स्मार्टफोन और घरेलू उपकरणों में उपयोग होने वाले महंगे और तकनीकी रूप से उन्नत कंपोनेंट्स का आयात बढ़ा है.
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कमजोर रुपया (Weak Rupee): भारतीय रुपये के मुकाबले अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना भी आयात की लागत (Import Cost) को बढ़ा देता है, जिससे रुपये के संदर्भ में कुल आयात बिल बढ़ जाता है.
हालांकि, सरकार के 'मेक इन इंडिया' अभियान के बावजूद, इन कंपनियों की फाइलिंग से यह बात भी सामने आई है कि 2018-19 के बाद से ज्यादातर कंपनियों के लिए आयात की वैल्यू कम नहीं हुई है. यह दिखाता है कि भारत अभी भी कई महत्वपूर्ण और जटिल कंपोनेंट्स के लिए विदेशी सप्लायर्स पर निर्भर है. केवल वित्त वर्ष 2024 में ही इन कंपनियों का कुल आयात बिल $6\%$ कम हुआ था, जो एक अपवाद साबित हुआ.
आत्मनिर्भरता की राह में बाधा
इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भारत सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना था. बड़ी संख्या में प्रमुख कंपनियों का भारत में अपना उत्पादन बढ़ाने के बावजूद, कंपोनेंट्स के आयात में यह वृद्धि दर्शाती है कि देश में इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स और पार्ट्स के निर्माण में अभी भी एक बड़ा अंतर (Gap) मौजूद है.
यह उछाल बताता है कि भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण (Electronics Manufacturing) में आत्मनिर्भर बनने के लिए अभी भी लंबा सफर तय करना है, खासकर उन कोर कंपोनेंट्स के निर्माण में जो आयात बिल का एक बड़ा हिस्सा हैं.