यमन के मुकल्ला पोर्ट पर हालिया सऊदी स्ट्राइक ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान इस खाड़ी देश की ओर खींच लिया है। एक दशक से अधिक समय से गृहयुद्ध की आग में झुलस रहा यमन आज वैश्विक शक्तियों और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों—सऊदी अरब, यूएई और ईरान—की शतरंज का मैदान बन चुका है। इस जटिल संघर्ष के बीच भारत अपनी ऐतिहासिक मित्रता और रणनीतिक हितों को साधने की अनूठी कोशिश कर रहा है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और कूटनीतिक प्रगाढ़ता
भारत और यमन के संबंध सदियों पुराने व्यापारिक रास्तों से जुड़े हैं। भारत उन अग्रणी देशों में से एक था जिसने यमन की ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आजादी का पुरजोर समर्थन किया था। 1962 में 'यमन अरब रिपब्लिक' (YAR) और 1967 में 'पीपल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ यमन' (PDRY) के अस्तित्व में आने के बाद, भारत उन्हें मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में शामिल था।
1990 में जब इन दोनों हिस्सों का विलय होकर 'रिपब्लिक ऑफ यमन' बना, तब भारत ने इस एकता का स्वागत किया। हालांकि, 2014 में हूती विद्रोहियों द्वारा राजधानी सना पर कब्जे के बाद स्थितियां बदल गईं। सुरक्षा कारणों से भारत को अपनी एंबेसी वहां से हटानी पड़ी, लेकिन यमन के साथ जुड़ाव खत्म नहीं हुआ। आज भारत अपना यमन मिशन सऊदी अरब की राजधानी रियाद से संचालित करता है।
रणनीतिक महत्व: बाब-अल-मंदेब का 'चोकपॉइंट'
यमन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उसकी भौगोलिक स्थिति है। यह दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री रास्तों में से एक 'बाब-अल-मंदेब जलडमरूमध्य' (Bab el-Mandeb Strait) पर स्थित है।
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व्यापारिक मार्ग: यह जलडमरूमध्य लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ता है। वैश्विक व्यापार का लगभग 10-15% हिस्सा यहीं से गुजरता है।
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ऊर्जा सुरक्षा: भारत के लिए यह मार्ग अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यूरोप जाने वाला अधिकांश व्यापार और खाड़ी देशों से आने वाला तेल इसी रास्ते से आता है। हाल ही में हूती विद्रोहियों द्वारा जहाजों पर किए गए हमलों ने इस मार्ग को असुरक्षित बना दिया है, जिससे स्वेज नहर का ट्रैफिक लगभग 50% तक गिर गया है।
व्यापारिक संबंध और मानवीय सहायता
युद्ध की विभीषिका के बावजूद भारत और यमन के बीच व्यापारिक गतिविधियां जारी हैं। वित्त वर्ष 2024-25 के आंकड़ों के अनुसार:
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कुल व्यापार: लगभग 1 बिलियन USD।
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निर्यात: भारत ने लगभग 850 मिलियन USD मूल्य का सामान यमन भेजा, जिसमें चावल, गेहूं, जीवन रक्षक दवाएं और टेक्सटाइल शामिल हैं।
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आयात: भारत मुख्य रूप से पेट्रोलियम उत्पाद और स्क्रैप धातु का आयात करता है।
भारत का दृष्टिकोण हमेशा मानवीय रहा है। भारत ने संघर्ष प्रभावित यमनियों को भोजन, दवाएं और राहत सामग्री पहुंचाने में कभी कमी नहीं की। कूटनीतिक रूप से, भारत सऊदी समर्थित 'प्रेसिडेंशियल लीडरशिप काउंसिल' (PLC) को वैध मानता है, लेकिन साथ ही एक ऐसी शांति प्रक्रिया पर जोर देता है जो समावेशी हो और जिसका नेतृत्व खुद यमनवासी करें।
निष्कर्ष
यमन का संघर्ष केवल आंतरिक सत्ता की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय हितों का टकराव है। भारत इस पूरे विवाद में एक 'न्यूट्रल' और भरोसेमंद मित्र की भूमिका निभा रहा है। मुकल्ला पोर्ट पर ताजा हमले बताते हैं कि शांति अभी दूर है, लेकिन भारत की सक्रिय मानवीय भागीदारी और रणनीतिक सतर्कता यह सुनिश्चित करती है कि इस अस्थिरता के दौर में भी उसके राष्ट्रीय हित और पुरानी दोस्ती कायम रहे।