साल 1971 में, भारत और पाकिस्तान की सरहद का माहौल भारी तनाव से भरा हुआ था. इसी माहौल के बीच, 9 जाट रेजिमेंट, जो उस समय 68 इन्फेंट्री ब्रिगेड का हिस्सा थी, सितंबर में खरू (जम्मू-कश्मीर) से अखनूर पहुँची थी. शुरुआत में भारतीय सेना की योजना स्पष्ट थी — इस बार भारत हमला करेगा, और 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के हाथों खोए गए चम्ब सेक्टर को वापस हासिल किया जाएगा.
इस शौर्यगाथा के लेखक स्वयं 9 जाट के एडजुटेंट कैप्टन थे, इसलिए यह वर्णन केवल इतिहास नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव का एक सच्चा लेखा-जोखा है.
यूनिट पूरी तैयारी में जुटी हुई थी. प्लाटून स्तर के अधिकारी भी सीमा पार करीब 30 किलोमीटर अंदर तक पाकिस्तान की बॉर्डर चौकियों—बोका, दल्ला आदि की रेकी (जासूसी) कर रहे थे. वे BSF की वर्दी पहनकर जाते, दुश्मन की हर स्थिति को देखते और नोट करते. 9 जाट की टुकड़ियाँ 9 डेक्कन हॉर्स टैंक रेजिमेंट के साथ मिलकर जोरदार सैन्य प्रशिक्षण कर रही थीं. जवानों का मनोबल एकदम ऊँचा था और सभी का नारा था — “इस बार चम्ब हम वापस लाएँगे.”
युद्ध की दिशा पलटी – 3 दिसंबर 1971
अचानक, 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत के हवाई ठिकानों पर पहले हवाई हमला कर दिया. इसके साथ ही, भारतीय सेना की 10 इन्फेंट्री डिवीजन की पूरी रणनीति बदल गई — भारतीय सेना को हमलावर की भूमिका से निकलकर रक्षात्मक भूमिका में जाना पड़ा.
उसी रात, 9 जाट को एक नया और चुनौतीपूर्ण आदेश मिला — पलानवाला सेक्टर जाओ और मनावर तवी नदी के पूर्वी तट पर रक्षा मोर्चा संभालो. यूनिट ने पहले कभी यह इलाका देखा भी नहीं था. अँधेरे, उड़ती धूल, युद्ध के तनाव और लगातार हो रही दुश्मन की गोलाबारी के बीच, जवान तेजी से पैदल कदम ताल करते हुए आगे बढ़ते रहे.
मनोबल की मिसाल: पीछे हटती टुकड़ियों के बीच आगे बढ़ना
रास्ते में 9 जाट के जवानों को 191 इन्फेंट्री ब्रिगेड की टुकड़ियाँ मिलीं — वे पीछे हट रही थीं. दुश्मन के प्रचंड दबाव में 191 ब्रिगेड अपने ही स्थायी मोर्चे महज तीन दिनों में छोड़ने को मजबूर हो गई थी. ऐसा दृश्य देखकर किसी भी नए या कम अनुभवी सैनिक का मनोबल टूट सकता था — लेकिन 9 जाट के बलवान सैनिक रुके नहीं, वे बिना हिचक और पूर्ण दृढ़ता के साथ आगे बढ़ते रहे.
दुश्मन के आर्टिलरी (तोपखाना) ऑब्जर्वर भी भारतीय टुकड़ियों के साथ मिलकर पीछे की ओर घुस आए थे. वे लगातार सही लोकेशन की जानकारी देकर भारतीय सेना के मूवमेंट पर गोलाबारी करवा रहे थे. फिर भी यूनिट ने अनुशासन की मिसाल कायम रखते हुए अपनी गति नहीं रोकी और बेहतरीन संगठनात्मक गठन में आगे बढ़ते हुए पलनवाला (जम्मू-कश्मीर) पहुँच गई, जहाँ उन्हें अपना रक्षा मोर्चा स्थापित करना था. 9 जाट की यह यात्रा युद्ध के दौरान विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहने की भावना को दर्शाती है.