भारतीय संसद के मानसून सत्र में आज “ऑपरेशन सिंदूर” को लेकर बड़ा राजनीतिक घमासान देखने को मिल सकता है। सरकार और विपक्ष दोनों के लिए यह विषय न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है, बल्कि राजनीतिक प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है। इस बीच चर्चा का बड़ा केंद्र बन गए हैं कांग्रेस सांसद डॉ. शशि थरूर, जिन्होंने लोकसभा में इस विषय पर बोलने से इनकार कर दिया है।
ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि
7 मई 2025 को भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” नाम से एक गुप्त सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया था, जिसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। यह ऑपरेशन 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में किया गया था, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई थी।
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को लेकर देशभर में सरकार की तारीफ हुई, लेकिन संसद में इस पर बहस के दौरान राजनीतिक मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं।
शशि थरूर का इनकार और उसके पीछे का कारण
कांग्रेस संसदीय दल (CPP) ने ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए जिन वरिष्ठ नेताओं से संपर्क किया, उनमें शशि थरूर का नाम भी शामिल था। लेकिन उन्होंने चर्चा में भाग लेने से इनकार कर दिया। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, थरूर ने कहा कि वह ऑपरेशन की सफलता और केंद्र सरकार के निर्णयों का समर्थन करते हैं — जो पार्टी की आधिकारिक लाइन से मेल नहीं खाती।
शशि थरूर ने इस मुद्दे पर अब तक कई बार खुले मंचों पर ऑपरेशन सिंदूर की प्रशंसा की है। उन्होंने इसे "रणनीतिक रूप से सफल और आवश्यक कदम" बताया था। यही बात उनके और कांग्रेस नेतृत्व के बीच तनाव की वजह बन रही है।
शशि थरूर पर आरोप
कांग्रेस के अंदरूनी हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि थरूर पार्टी लाइन से अलग रुख अपनाकर BJP समर्थक प्रवक्ता जैसा व्यवहार कर रहे हैं। पार्टी के कुछ नेताओं ने यह भी कहा कि शशि थरूर का नाम जानबूझकर वक्ताओं की सूची से हटाया गया, क्योंकि उनकी राय कांग्रेस की रणनीति को कमजोर कर सकती थी।
इस संदर्भ में, कांग्रेस ने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, गौरव गोगोई, दीपेंद्र हुड्डा, सप्तगिरी उल्का और बृजेंद्र ओला जैसे नेताओं को आगे किया है। गौरव गोगोई को विपक्ष की ओर से चर्चा का नेतृत्व सौंपा गया है।
कांग्रेस की दोहरी रणनीति
कांग्रेस की रणनीति स्पष्ट है — पार्टी ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन करते हुए भी केंद्र सरकार पर सवाल उठाना चाहती है। खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कथित युद्धविराम मध्यस्थता के दावे को लेकर कांग्रेस सरकार से स्पष्टीकरण मांग रही है।
शशि थरूर ने न सिर्फ इस दावे को खारिज किया बल्कि केंद्र सरकार की रणनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की। यह पार्टी की तय रणनीति से भिन्न था, और यही वजह है कि थरूर को मंच पर नहीं आने दिया गया।
पुराने मतभेद भी उभरे
थरूर पहले भी G-23 समूह का हिस्सा रहे हैं, जिसने 2021 में कांग्रेस नेतृत्व की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। इसके अलावा उन्होंने इंदिरा गांधी की आपातकाल नीति की आलोचना करते हुए लेख भी लिखे थे। ये घटनाएं उन्हें पार्टी हाईकमान की नजरों में एक स्वतंत्र विचारधारा रखने वाले नेता के रूप में दिखाती हैं — लेकिन पार्टी अनुशासन के लिहाज से यह रुख अक्सर टकराव का कारण बनता रहा है।