मुंबई, 16 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को भाजपा शासित राज्यों में बांग्ला बोलने वालों के साथ हो रहे कथित भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ कोलकाता में विरोध मार्च निकाला। यह रैली कॉलेज स्क्वायर से शुरू होकर धर्मतला के दोरीना क्रॉसिंग तक पहुंची, जिसमें तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक बनर्जी समेत कई प्रमुख नेता शामिल हुए। साथ ही राज्य के सभी जिलों में भी इसी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए। यह प्रदर्शन ऐसे समय में हुआ है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल के दौरे पर आने वाले हैं। ममता बनर्जी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें बंगालियों के साथ हो रहे व्यवहार पर शर्म और निराशा है। उन्होंने ऐलान किया कि अब से वह अधिकतर बातें बांग्ला में ही करेंगी और अगर उन्हें डिटेंशन कैंप में डालना है तो डाल दिया जाए। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह बंगालियों को बांग्लादेशी या विदेशी बताकर प्रताड़ित कर रही है और उन्हें जेलों व डिटेंशन कैंपों में भेजा जा रहा है। उन्होंने सवाल किया कि क्या बंगाल देश का हिस्सा नहीं है और कहा कि भाजपा राज्यों में बैठकर बंगाल के वोटरों के नाम मतदाता सूची से कटवा रही है।
मुख्यमंत्री ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह महाराष्ट्र में भी यही खेल कर चुकी है और अब बिहार में कर रही है। उन्होंने चुनाव आयोग पर भाजपा की दलाली करने का आरोप लगाया और पूछा कि क्या मतदाता सूची में संशोधन एनआरसी को पीछे के दरवाजे से लागू करने की कोशिश है। ममता बनर्जी ने भाजपा को चुनौती देते हुए कहा कि साबित किया जाए कि देश के अन्य हिस्सों में काम कर रहे 22 लाख बंगाली प्रवासी श्रमिक रोहिंग्या मुसलमान हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि इन सभी के पास वैध पहचान दस्तावेज हैं और उन्हें विदेशी बताकर अपमानित करना निंदनीय है। ममता बनर्जी की रैली के जवाब में भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि यह विरोध मार्च दरअसल अवैध घुसपैठियों को बचाने की एक राजनीतिक कोशिश है। उन्होंने ममता बनर्जी पर सवाल उठाया कि जब हजारों बंगाली शिक्षकों को सरकारी भर्तियों में गड़बड़ियों के कारण नौकरी से निकाला गया, तब उन्होंने उनकी मदद क्यों नहीं की। साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री खुद बंगाली अधिकारियों की उपेक्षा करती हैं और वरिष्ठ बंगाली अफसरों को उच्च पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता। इस विरोध प्रदर्शन को ओडिशा में कुछ बांग्लादेशियों की गिरफ्तारी, दिल्ली में बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ अभियान और असम में एक बंगाली किसान को विदेशी घोषित किए जाने जैसी घटनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है। एक साल बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और राजनीतिक जानकार मानते हैं कि तृणमूल कांग्रेस बंगाली अस्मिता और भाषा के मुद्दे को फिर से चुनावी मंच पर ला रही है।