बीकानेर, 9 अक्टूबर 2021 देशभर की आस्था का केंद्र है जम्मू में स्थित वैष्णो देवी माता का मंदिर। जहां पिंडियों के रूप में विराजित है सरस्ती, लक्ष्मी और काली माता और अदृश्य रूप में मां वैष्णो। देश के कोने-कोने से लाखों लोग वहां पर धोक लगाने पहुंचते हैं। बीकानेर भी उससे अछूता नहीं है। मगर, सभी लोगों के लिए जम्मू जाकर वहां दर्शन करना संभव नहीं है।
ऐसे ही लोगों को जम्मू के वैष्णो धाम जैसे ही अनुभव हो इसी को देखते हुए बीकानेर में श्री भगवती मंडल सेवा संस्थान की ओर से जयपुर रोड पर बीकानेर से छह किमी दूर बनाया गया वैष्णो धाम। हूबहू वैष्णो धाम जैसी अनुभूति वाला मंदिर अब 19 साल का हो चुका है। यहां पर 7 फरवरी, 2002 से वैष्णो देवी और वहां से 400 किमी दूर ज्वालाजी से लाई ज्योत अनवरत चल रही है।
संस्थान के अध्यक्ष सुरेश खिवाणी बताते हैं कि पहले ट्रस्ट का गठन किया गया फिर जमीन खरीदी। मां वैष्णो देवी के मंदिर की स्थापना वर्ष 2000 से शुरू हुई जो अनवरत जारी है। आम आदमियों के सहयोग से विहंगम मंदिर बनना शुरू हुआ। राज परिवार के बाद की बात करे तो निजी स्तर पर जनता के सहयोग से बना यह शहर का सबसे बड़ा मंदिर है।
मंदिर में प्रवेश से लेकर बाहर तक का मार्ग
सबसे पहले सिंहद्वार से अंदर प्रवेश करवाया जाता है। पूर्व में हनुमानजी व पश्चिम में त्रिकाल भैरूं विराजमान है। अंदर प्रवेश करते ही सामने गणेशजी की प्रतिमा नजर आएगी। रास्ते में दाई ओर खाटू श्याम का मंदिर है। उसके पास माता का पुराना मंदिर है जो मंदिर निर्माण के समय वर्ष 2000 में बना था। उसके पास भगवान शिव परिवार विराजमान है। वहां से आगे चलने पर शिव लिंग की स्थापना की गई है।
उसके बाद कटरा प्रवेश द्वार आता है जहां बाण गंगा बह रही है, वहां गंगा माता का भी मंदिर है। उसके आगे माता के चरण है जिसे चरण पादुका मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर से आगे चढ़ने पर अर्धकुमारी मंदिर आता है। इस मंदिर के पास ही गर्भ गुफा है जहां माता का मंदिर है। पास में हनुमान मंदिर है। गर्भ गुफा से निकलने पर पर्वत के शिखर पर हथिमथ है जिस पर भगवान भोलेनाथ विराजमान है जिनकी जटा से गंगा निकल रही है।
ऐसे मिली मंदिर बनाने की प्रेरणा : सुरेश खिवाणी बताते हैं कि 40 साल से माता का जागरण करते हैं। वैष्णों देवी बस लेकर भी जाते हैं। 1997 में एक बार बस में यात्री पूरे नहीं हुए। 14 सदस्य एक रात पहले किसी कारण से नहीं आ सके। ऐसे में भगवती मंडल ने रिक्त सीटों पर गरीबों को ले जाने का निर्णय लिया। वे बस में गरीब लोगों को लेकर रवाना हुए। अमृतसर में अलसुबह 4 बजे उन्हें माताजी ने सपने में दर्शन दिए कि हर बार इतने गरीब लोगों को कैसे लेकर आएगा, ऐसा कर मेरा मंदिर बीकानेर में बना दे। सुरेश बताते हैं कि उन्होंने मां के सामने अपनी व्यथा रखी, बोले कि इतना बड़ा मंदिर मैं कैसे बना पाऊंगा। मां ने कहा मंदिर में तो मैं ही बनवाऊंगी, तूम तो प्रयास में जुट जाओ।
पथरीला रास्ता प्राकृतिक एहसास दिलाता है : मंदिर परिसर में बने कृत्रिम पहाड़ों की ऊंचाई 70 फीट है। श्रद्धालु इन पर आसानी से चढ़ पाए और उन्हें वैष्णोधाम जैसे पर्वतों पर चलने की ही अनुभूति हो इसके लिए रास्ता भी पथरीला बनाया गया है।