रान के शिया धार्मिक नेता ग्रैंड अयातुल्ला नासेर मकारिम शिराजी ने हाल ही में एक ऐसा फतवा जारी किया है जिसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। इस फतवे में उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को “भगवान का दुश्मन” घोषित करते हुए दुनियाभर के मुसलमानों से दोनों को जान से मारने का आह्वान किया है। यह फतवा ईरानी धार्मिक संगठनों के बीच एक कड़ा संदेश माना जा रहा है, जिसमें अमेरिका और इजरायल के खिलाफ गुस्सा और विरोध प्रकट किया गया है। इसी क्रम में ईरान के अन्य प्रमुख धार्मिक नेता ग्रैंड अयातुल्ला नूरी हमदानी ने भी एक फतवा जारी किया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि जो भी व्यक्ति या सरकार ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई को धमकी देगी, वह खुद भगवान का दुश्मन होगा।
खामेनेई को मिली धमकी और प्रतिक्रिया
ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई की सुरक्षा को लेकर हाल ही में बड़ी चिंताएं सामने आई हैं। खबरें आ रही हैं कि खामेनेई अपने परिवार के साथ किसी बंकर में छिपे हुए हैं, जहां वे अमेरिकी और इजरायली हमलों से बचने का इंतजाम कर रहे हैं। खामेनेई ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को स्पष्ट चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका और इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, तो ईरान जवाबी कार्रवाई करेगा और मध्य पूर्व में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर भी हमला करेगा।
खामेनेई ने देशवासियों से इजरायल के खिलाफ जश्न मनाने की अपील भी की है, यह संकेत देते हुए कि वे मानते हैं कि ईरान इस संघर्ष में विजेता होगा। उनके इस आक्रामक बयान ने क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा दिया है।
ट्रंप की तीखी प्रतिक्रिया
खामेनेई की इस चेतावनी के जवाब में डोनाल्ड ट्रंप ने भी बिना किसी रोक-टोक के कड़ा रुख अपनाया। ट्रंप ने खामेनेई को “एहसान फरामोश” करार देते हुए कहा कि यदि ईरान ने परमाणु हथियारों के निर्माण की कोशिश की या ऐसा सोचा भी तो अमेरिका पहले से कहीं अधिक सख्त कार्रवाई करेगा। ट्रंप ने कहा कि उन्हें पता है कि खामेनेई कहां छिपे हुए हैं, लेकिन अमेरिका और इजरायल ने उन्हें जान बचाने का मौका दिया है, जबकि खामेनेई ने इसका आभार व्यक्त करने की बजाय धमकियां जारी रखी हैं।
ट्रंप के इस जवाब ने दोनों पक्षों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है और वैश्विक स्तर पर युद्ध की आशंकाओं को ताजा कर दिया है।
ईरान-इजरायल के बीच 12 दिन चली जंग
पिछले कुछ हफ्तों में ईरान और इजरायल के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था, जिसकी शुरुआत इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर 12 जून को हमले से हुई थी। इस हमले के जवाब में ईरान ने इजरायल पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए, जिसके कारण दोनों के बीच करीब 12 दिन तक जंग जैसी स्थिति बनी रही।
इस संघर्ष के 11वें दिन अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी कर भारी नुकसान पहुंचाया। इस युद्ध जैसे हालात के चलते 13वें दिन अमेरिका ने कतर की मध्यस्थता में ईरान और इजरायल के बीच एक सीजफायर (युद्धविराम) की घोषणा करवाई। हालांकि, इस युद्धविराम के बाद भी तनाव बरकरार है और दोनों पक्षों में शांति स्थापित होने की कोई गारंटी नहीं है।
धार्मिक नेताओं का कड़ा रुख
ईरान में धार्मिक नेता अयातुल्ला नासेर मकारिम शिराजी और नूरी हमदानी जैसे शख्सियतों का यह फतवा न केवल धार्मिक समुदाय के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक गंभीर संकेत है। यह फतवा इस बात का प्रमाण है कि ईरानी धार्मिक नेतृत्व ट्रंप और नेतन्याहू को अपने सबसे बड़े दुश्मनों के रूप में देखता है और उनकी गतिविधियों को पूरी तरह नकारता है।
इस फतवे ने मध्य पूर्व की राजनीति को और जटिल बना दिया है, क्योंकि इस क्षेत्र में धार्मिक और राजनीतिक संघर्ष गहराता जा रहा है। यह फतवा उन लाखों मुसलमानों को भी सीधे संबोधित करता है जो ईरान की धार्मिक विचारधारा से जुड़े हुए हैं और उनके लिए इसे एक धार्मिक और नैतिक आदेश माना जाएगा।
वैश्विक राजनीति और तनाव
ईरान का परमाणु कार्यक्रम हमेशा से विवाद का विषय रहा है। अमेरिका और इजरायल इसके प्रसार को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाते रहे हैं। ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले और इसके जवाबी कार्रवाईयों ने न केवल मध्य पूर्व में बल्कि पूरी दुनिया में चिंता पैदा कर दी है।
इस क्षेत्र में किसी भी तरह की हिंसा वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और आर्थिक स्थिरता को भी प्रभावित कर सकती है। साथ ही, बड़े पैमाने पर युद्ध की स्थिति में लाखों निर्दोष लोग प्रभावित हो सकते हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस क्षेत्र में स्थिरता के लिए लगातार प्रयासरत है।
निष्कर्ष
ईरान के धार्मिक नेताओं द्वारा जारी फतवा और खामेनेई की कड़ी चेतावनी से स्पष्ट हो गया है कि क्षेत्रीय संघर्ष अब और भी अधिक तीव्र होता जा रहा है। ट्रंप और नेतन्याहू के खिलाफ यह आक्रामक रुख और दोनों पक्षों के बीच बढ़ती तनावपूर्ण स्थिति ने मध्य पूर्व को एक बार फिर युद्ध की कगार पर ला दिया है।
वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए आवश्यक होगा कि सभी पक्ष संवाद और कूटनीति के रास्ते खोजें, क्योंकि हिंसा के बढ़ने से पूरे विश्व में तबाही और अस्थिरता ही बढ़ेगी। आने वाले समय में इस संकट का समाधान कैसे निकलेगा, यह विश्व समुदाय की एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।