भारत द्वारा हाल ही में अंजाम दिए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान में हड़कंप मच गया है। जहां एक ओर भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए पाकिस्तानी ठिकानों पर कार्रवाई की, वहीं अब पाकिस्तान की ओर से नरम रुख देखने को मिल रहा है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने खुद आगे आकर भारत के साथ बातचीत की पेशकश की है। उनका कहना है कि पाकिस्तान कश्मीर, जल बंटवारा, व्यापार और आतंकवाद जैसे सभी अहम मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है।
“हम बातचीत के लिए तैयार हैं” – शहबाज शरीफ
पाकिस्तानी मीडिया हाउस 'डॉन' की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री शरीफ ने यह बयान ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में दिया। उन्होंने कहा:
“हम अपने पड़ोसी के साथ सभी मुद्दों पर बातचीत करना चाहते हैं – चाहे वो जल बंटवारे से जुड़ा हो, व्यापार से संबंधित हो या फिर आतंकवाद से निपटने का मामला हो। पाकिस्तान शांति चाहता है और बातचीत के जरिए ही हम अपने लंबित मुद्दों को हल करना चाहते हैं।”
शरीफ ने आगे कहा कि यदि भारत उनकी इस शांति प्रस्ताव को स्वीकार करता है, तो पाकिस्तान यह साबित कर देगा कि वह ईमानदारी और गंभीरता से शांति चाहता है।
ऑपरेशन सिंदूर का असर
भारत ने हाल ही में आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक कदम उठाते हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' को अंजाम दिया। इस ऑपरेशन में भारत ने पाकिस्तान के भीतर स्थित आतंकी ठिकानों को टारगेट किया। सूत्रों के मुताबिक, यह ऑपरेशन पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में था, जिसमें निर्दोष नागरिकों की जान गई थी।
इसके बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए, जिनमें से एक बड़ा निर्णय था 'सिंधु जल संधि' को स्थगित करना। यह संधि भारत-पाकिस्तान के बीच 1960 से लागू थी और इसे अब भारत ने आंशिक रूप से रोक दिया है। पाकिस्तान पर इस फैसले का सीधा असर पड़ा, क्योंकि उसकी कृषि व्यवस्था काफी हद तक इन नदियों पर निर्भर है।
क्या बदल गई है पाकिस्तान की रणनीति?
शहबाज शरीफ का यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। महंगाई चरम पर है, IMF से कर्ज की शर्तें सख्त हैं और राजनीतिक अस्थिरता भी चरम पर है। साथ ही, पाकिस्तान में आंतरिक आतंकवाद भी तेजी से बढ़ रहा है, जिसकी वजह से सेना और सरकार की नीतियों पर सवाल उठ रहे हैं।
ऐसे हालात में पाकिस्तान के पास विकल्प सीमित हैं। भारत से बातचीत की पेशकश कहीं न कहीं राजनयिक दबाव और आंतरिक संकट को संभालने की कोशिश मानी जा रही है।
ईरान का समर्थन और क्षेत्रीय शांति की अपील
इस संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने भी भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद और समझौते की वकालत की। उन्होंने कहा:
“हम चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान अपने सभी मुद्दों को बातचीत के जरिए सुलझाएं। क्षेत्रीय स्थिरता के लिए जरूरी है कि पड़ोसी देश एक-दूसरे से सहयोग करें, न कि संघर्ष करें।”
यह बयान भी यह दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान अब अलग-थलग पड़ता जा रहा है, और वह अब अपने पड़ोसियों की मदद से भारत से बातचीत का रास्ता तलाशना चाहता है।
भारत की चुप्पी रणनीतिक?
हालांकि पाकिस्तान ने बातचीत की अपील की है, लेकिन भारत सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। भारत का रुख अब अधिक रणनीतिक और परिणामोन्मुखी होता जा रहा है। पिछले वर्षों के अनुभवों को देखते हुए भारत अब बातचीत से पहले ठोस कार्यवाही और आतंकी गतिविधियों पर लगाम चाहता है।
निष्कर्ष: क्या यह बदलाव असली है?
पाकिस्तान की बातचीत की पेशकश को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है –
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क्या यह वास्तविक शांति की पहल है?
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या फिर यह एक रणनीतिक चाल है ताकि अंतरराष्ट्रीय दबाव को कम किया जा सके?
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क्या पाकिस्तान वाकई आतंकवाद पर अंकुश लगाएगा?
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की नीति में यह बदलाव एक राजनयिक जीत के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन भारत अब जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाएगा।
शांति अच्छी है, लेकिन सच्ची शांति तभी संभव है जब आतंक का नेटवर्क पूरी तरह ध्वस्त हो।
अब सबकी नजरें इस बात पर होंगी कि पाकिस्तान की यह पहल कितनी ईमानदार साबित होती है – और भारत कैसे इस पर प्रतिक्रिया देता है।