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‘भारत-चीन को लड़ाना चाहते हैं पश्चिमी देश’, रूस के विदेश मंत्री का बड़ा बयान

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Posted On:Saturday, May 17, 2025

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान दिया है, जिसमें उन्होंने पश्चिमी देशों की विदेश नीति की आलोचना की है। लावरोव का कहना है कि पश्चिमी देश “बांटो और राज करो” यानी डिवाइड एंड रूल की नीति पर चल रहे हैं, जिसका मकसद एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तनाव फैलाना है। वे यह साफ कर चुके हैं कि पश्चिम के देश भारत और चीन को आपस में भिड़ाना चाहते हैं ताकि अपनी भौगोलिक और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ा सकें।

पश्चिमी देशों की रणनीति: भारत और चीन को टकराने पर मजबूर करना

सर्गेई लावरोव ने कहा कि पहले पश्चिमी देश भारत और पाकिस्तान को आपस में लड़वाने की कोशिश कर रहे थे। इस नीति से क्षेत्र में स्थिरता नहीं आई, बल्कि तनाव और बढ़ा। अब उनका नया फोकस भारत और चीन के बीच विवादों को बढ़ावा देना है। वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र को ‘इंडो-पैसिफिक’ नाम से पुकार रहे हैं, जो वास्तव में चीन के खिलाफ एक गठबंधन बनाने की कोशिश है।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी इस स्थिति की निंदा की है और इसे साफ तौर पर डिवाइड एंड रूल की नीति बताया है। उनका मानना है कि इस नीति का मकसद केवल अपनी ताकत और प्रभुत्व को कायम रखना है, और इसके लिए वे क्षेत्र के बड़े देशों को आपस में लड़वाना चाहते हैं।

क्या है इंडो-पैसिफिक रणनीति?

इंडो-पैसिफिक रणनीति हाल के वर्षों में पश्चिमी देशों ने पेश की है, जिसमें वे हिंद महासागर से लेकर प्रशांत महासागर तक के क्षेत्र को एक संयुक्त रणनीतिक क्षेत्र मानते हैं। इसका उद्देश्य चीन की बढ़ती आर्थिक और सैन्य ताकत को सीमित करना है। इस रणनीति के तहत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देश एक साथ आकर चीन के प्रभाव को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, रूस इसे एक चालाक रणनीति मानता है जो क्षेत्रीय शांति के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।

भारत-चीन टकराव को लेकर रूस की चिंता

लावरोव का यह बयान भारत और चीन दोनों के लिए एक चेतावनी भी है। वे चाहते हैं कि दोनों देश आपस में विवाद बढ़ाने की बजाय सहयोग की राह अपनाएं। उनका मानना है कि भारत और चीन जैसे महाशक्तियों के बीच तनाव न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी खतरनाक है।

ऑपरेशन सिंदूर: भारत की सशक्त सैन्य कार्रवाई

इस राजनीतिक पृष्ठभूमि में भारत ने हाल ही में पाकिस्तान के खिलाफ सशक्त कदम उठाए हैं। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया, जिसमें पाकिस्तान में स्थित आतंकियों के ठिकानों को निशाना बनाया गया। इसके बाद पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइलों से भारतीय ठिकानों पर हमले की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना ने इस हमले को सफलतापूर्वक नाकाम कर दिया।

भारतीय सेना की इस कार्रवाई में यह खास बात थी कि उन्होंने बॉर्डर पार किए बिना ही पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया। इस सैन्य सफलता ने पाकिस्तान की सरकार, खासकर शहबाज शरीफ की प्रशासन को गंभीर संकट में डाल दिया। इस घटना ने दिखा दिया कि भारत अपनी सुरक्षा के प्रति कितनी सजग और सक्रिय है।

पाकिस्तान की नापाक कोशिशों पर जवाब

पाकिस्तान की ड्रोन और मिसाइल हमलों की कोशिश को भारतीय सेना ने पूरी तरह से नाकाम किया है। यह साफ संकेत है कि भारत अपने अंदरूनी सुरक्षा को लेकर पूरी तरह सतर्क है और किसी भी खतरे का जवाब देने को तैयार है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि भारत ने इस दौरान कोई बॉर्डर क्रॉसिंग नहीं की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत विवाद को सैन्य संघर्ष में बदलने से बचना चाहता है, लेकिन जरूरत पड़ने पर पूरी ताकत से अपने सुरक्षात्मक कदम उठा सकता है।

पश्चिमी देशों की नीति और भारत का रुख

पश्चिमी देशों की इस “बांटो और राज करो” नीति के चलते क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ रही है, लेकिन भारत ने हमेशा से अपने पड़ोस के देशों के साथ दोस्ताना और सहयोगपूर्ण संबंध बनाए रखने की नीति अपनाई है। भारत का रुख शांति और स्थिरता की तरफ रहा है। हालांकि, सुरक्षा के लिहाज से वह हर संभव कदम उठाने को तैयार भी है।

निष्कर्ष

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का यह बयान हमें यह समझने में मदद करता है कि वैश्विक राजनीति में कितनी जटिलताएं हैं और किस प्रकार से बड़ी शक्तियां अपने हितों के लिए क्षेत्रीय देशों को लड़वाने की रणनीति अपनाती हैं। भारत और चीन दोनों के लिए आवश्यक है कि वे ऐसे बाहरी दबावों को नकारें और सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ें।

भारत की सशक्त सैन्य कार्रवाई जैसे ऑपरेशन सिंदूर से स्पष्ट होता है कि भारत अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के प्रति गंभीर है। भारत को न केवल अपनी सुरक्षा बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए भी सतर्क रहना होगा।

पश्चिमी देशों की चालों को समझते हुए, भारत को अपनी कूटनीति, रक्षा और आर्थिक नीतियों को इस तरह से तैयार करना होगा कि वह न केवल खुद को सुरक्षित रख सके बल्कि क्षेत्रीय शांति और विकास में भी अहम भूमिका निभा सके।


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