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Nikita Roy Movie Review: कुश सिन्हा ने सुपरनैचुरल थ्रिलर के जरिए दी है डर को नई पहचान!



‘निकिता रॉय’ उन फिल्मों में से है, जो सिर्फ डराने नहीं, बल्कि सोचने पर मजबूर करने के लिए बनी है।

Posted On:Friday, July 18, 2025

डायरेक्टर: कुश सिन्‍हा
कास्ट: सोनाक्षी सिन्हा, परेश रावल, अर्जुन रामपाल, सुहैल नैयर
समय: 116 मिनट

कुश सिन्हा की डायरेक्टोरियल डेब्यू ‘निकिता रॉय’ डर की उस दुनिया में ले जाती है, जहां डर सिर्फ डराने का बहाना नहीं, बल्कि सोचने का जरिया बनजाता है। यह फिल्म अंधविश्वास के जाल, समाज की कमजोरियों और इंसानी मन की उलझनों को उस अंदाज में दिखाती है, जो आपको कहानी केसाथ बांधे रखता है। हॉरर फिल्मों में जो दिखावटी डर अक्सर दिखता है, उससे ये फिल्म बिल्कुल अलग है, यहां डर सीन के पीछे छुपा है, जो धीरे-धीरेआपके मन में जगह बनाता है।

कहानी की शुरुआत अर्जुन रामपाल के किरदार से होती है, जिसकी जिंदगी किसी अदृश्य खतरे से घिरी हुई है। वह खतरा किसी अचानक डराने वालीचीज से नहीं आता, बल्कि एक साइलेंट डर है, जो धीरे-धीरे दिल की धड़कनों को बढ़ाता है। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, रहस्य और डर के धागेएक-दूसरे में उलझते जाते हैं और आप खुद को उसी डर की गिरफ्त में पाते हैं।

इस फिल्म की असली जान सोनाक्षी सिन्हा का किरदार है। वह एक ऐसी लड़की बनी हैं, जो झूठे बाबाओं और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठातीहै। लेकिन जब वही खेल उसकी जिंदगी में उतरता है, तो वह खुद उसी मकड़जाल में उलझ जाती है। सोनाक्षी ने इस किरदार को अपने एक्सप्रेशंसऔर सधी हुई एक्टिंग से इतना असरदार बना दिया है कि आप उनके दर्द और डर को महसूस करते हैं।

सुहैल नय्यर, जो सोनाक्षी के अतीत का हिस्सा हैं, कहानी में जरूरी इमोशनल लेयर जोड़ते हैं। उनकी मौजूदगी कहानी में एक ऐसा भावनात्मक पहलू लेआती है, जो डर के बीच इंसानियत का एहसास कराता है। उनका किरदार छोटा है, मगर कहानी में उसका असर गहरा है।

परेश रावल इस फिल्म में उस किस्म के बाबा का रोल निभाते हैं, जिनकी शांति के पीछे एक गहरी चालाकी छिपी होती है। परेश रावल की एक्टिंग नेइस किरदार को इतना मजबूत बना दिया है कि उनके सीन डर से ज्यादा बेचैनी पैदा करते हैं। उन्होंने साबित कर दिया है कि डर फैलाने के लिए ज्यादाकुछ करने की जरूरत नहीं, बस एक ठंडी मुस्कान ही काफी है।

कुश सिन्हा की डायरेक्शन में सबसे खास बात उनकी सोच है, उन्होंने इस फिल्म को डरावनी बनाने के लिए सस्ते हथकंडों का सहारा नहीं लिया। उन्होंनेकहानी को उसके असली रूप में सामने रखा, बिना जरूरत से ज्यादा डराए, लेकिन हर पल आपको कहानी से जोड़े रखा। यह उनका एक सधा हुआऔर समझदारी भरा डायरेक्शन है, जो फिल्म को अलग मुकाम पर ले जाता है।

पवन कृपलानी की लिखी कहानी और शानदार सिनेमेटोग्राफी ने इस फिल्म में सही माहौल तैयार किया है। कैमरा मूवमेंट, लाइटिंग और साउंड नेमिलकर वो माहौल बनाया है, जो कहानी को और असरदार बनाता है। प्रोड्यूसर्स की मेहनत हर फ्रेम में दिखती है कि फिल्म टेक्निकली भी उतनी हीमजबूत है, जितनी कंटेंट में।

‘निकिता रॉय’ उन फिल्मों में से है, जो सिर्फ डराने नहीं, बल्कि सोचने पर मजबूर करने के लिए बनी है। ये फिल्म सवाल उठाती है कि क्या हमअंधविश्वास में इतनी आसानी से फंस जाते हैं? क्या हर बाबा या गुरू सच में वही होते हैं, जो दिखते हैं? अगर आप थ्रिलर फिल्मों में सिर्फ हॉरर नहीं, एक सही मैसेज और सच्ची कहानी देखना चाहते हैं, तो ‘निकिता रॉय’ आपके लिए बिल्कुल सही है।


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