बढ़ते प्रदूषण के संकट के बीच आम जनता के लिए एक राहत भरी खबर सामने आ रही है। केंद्र सरकार और जीएसटी काउंसिल जल्द ही एयर और वॉटर प्यूरीफायर पर लगने वाले टैक्स में भारी कटौती का फैसला ले सकते हैं। वर्तमान में इन जीवन रक्षक उपकरणों पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है, जिसे घटाकर 5 फीसदी करने की तैयारी है।
लक्जरी नहीं, अब 'अनिवार्य वस्तु' की श्रेणी में होंगे प्यूरीफायर
अब तक एयर और वॉटर प्यूरीफायर को कंज्यूमर ड्यूरेबल्स या विलासिता (Luxury) की श्रेणी में रखा जाता था। हालांकि, दिल्ली-एनसीआर समेत देश के कई हिस्सों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) के खतरनाक स्तर और प्रदूषित जल की समस्या को देखते हुए इन्हें 'आवश्यक वस्तुओं' (Essential Goods) की कैटेगरी में डालने की मांग उठी है।
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कीमतों पर असर: विशेषज्ञों का मानना है कि यदि टैक्स स्लैब 18% से गिरकर 5% पर आता है, तो बाजार में इन प्रोडक्ट्स की खुदरा कीमतों में 10 से 15 फीसदी तक की कमी आएगी।
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आम आदमी को फायदा: कीमतों में कमी आने से निम्न और मध्यम आय वर्ग के परिवार भी साफ हवा और सुरक्षित पानी का लाभ उठा सकेंगे, जो अब तक उनके बजट से बाहर था।
दिल्ली हाई कोर्ट का सख्त रुख
इस मामले में सबसे बड़ा मोड़ 24 दिसंबर को दिल्ली हाई कोर्ट के हस्तक्षेप से आया। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि दिल्ली-एनसीआर में गंभीर वायु प्रदूषण को देखते हुए एयर प्यूरीफायर पर जीएसटी हटाने या कम करने पर जल्द से जल्द विचार किया जाए। अदालत ने यहाँ तक कहा कि यदि फिजिकल मीटिंग संभव न हो, तो वर्चुअल बैठक बुलाकर इस पर निर्णय लिया जाए।
हालांकि, सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि जीएसटी काउंसिल की बैठकें आमतौर पर व्यक्तिगत उपस्थिति में होती हैं। फिर भी, कोर्ट के दबाव के बाद केंद्र ने आश्वासन दिया है कि इस मामले पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।
बढ़ता राजनीतिक और सामाजिक दबाव
सिर्फ न्यायपालिका ही नहीं, बल्कि विधायी समितियों और राजनेताओं ने भी इस कटौती की वकालत की है:
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संसदीय स्थायी समिति: पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन संबंधी संसदीय समिति ने अपनी दिसंबर की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा कि नागरिकों को स्वच्छ हवा और पानी के लिए 'टैक्स' के रूप में दंडित नहीं किया जाना चाहिए। समिति ने प्यूरीफायर के साथ-साथ उनके स्पेयर पार्ट्स पर भी टैक्स कम करने की सिफारिश की है।
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राजनीतिक मांग: दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई नेताओं ने तर्क दिया है कि जब प्रदूषण एक राष्ट्रीय आपदा बन चुका है, तो इससे बचाव के उपकरणों पर भारी टैक्स वसूलना जन स्वास्थ्य के खिलाफ है।
उद्योग जगत की उम्मीदें
इंडस्ट्री बॉडीज और व्यापार संगठनों ने सरकार को दिए ज्ञापन में कहा है कि टैक्स कम होने से न केवल आम जनता का भला होगा, बल्कि इन उपकरणों की डिमांड बढ़ेगी, जिससे 'मेक इन इंडिया' के तहत घरेलू उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा।
चुनौतियां और निष्कर्ष
जीएसटी दरों में किसी भी बदलाव के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की सहमति (Fitment Committee) अनिवार्य है। सरकार का एक पक्ष यह भी है कि टैक्स कम करने से राजस्व का नुकसान हो सकता है, जिसे "मुसीबतों का पिटारा" खोलने जैसा बताया गया है।
लेकिन, जिस तरह से प्रदूषण अब एक 'हेल्थ इमरजेंसी' बन चुका है, उसे देखते हुए यह संभावना प्रबल है कि अगली जीएसटी काउंसिल मीटिंग में सरकार जनहित को प्राथमिकता देते हुए प्यूरीफायर को सस्ता करने का ऐतिहासिक फैसला ले ले।