भारत के 15वें उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में एनडीए (NDA) के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन ने निर्णायक जीत हासिल की है। वहीं, विपक्षी दलों के साझा उम्मीदवार और पूर्व न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। चुनाव परिणाम आने के बाद बी. सुदर्शन रेड्डी का पहला बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रक्रियाओं के प्रति अपनी आस्था जताई है।
बी. सुदर्शन रेड्डी की प्रतिक्रिया
यूपीए (UPA) उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करते हुए लिखा:
"आज, सांसदों ने भारत के उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में अपना फैसला सुना दिया है। मैं अपने महान गणराज्य की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में अटूट विश्वास के साथ इस परिणाम को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता हूं।"
उन्होंने आगे लिखा कि भले ही परिणाम उनके पक्ष में नहीं आया है, लेकिन वे जिस वैचारिक उद्देश्य के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे, उसकी महत्ता कम नहीं हुई है।
"हालांकि परिणाम मेरे पक्ष में नहीं है, फिर भी जिस व्यापक उद्देश्य को हम सामूहिक रूप से आगे बढ़ाना चाहते थे, वह कम नहीं हुआ है। वैचारिक संघर्ष और भी जोर-शोर से जारी रहेगा।"
रेड्डी ने विजेता उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन को बधाई देते हुए उनके कार्यकाल की सफलता की कामना भी की। उन्होंने कहा:
"मैं नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन को उनके कार्यकाल की शुरुआत के लिए शुभकामनाएं देता हूं।"
लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर जताया भरोसा
पूर्व न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी के इस बयान को विपक्षी खेमे में एक संयमित और परिपक्व प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने हार को व्यक्तिगत स्तर पर नहीं लिया बल्कि इसे लोकतंत्र की एक स्वाभाविक प्रक्रिया बताया। उनके इस रुख को राजनीतिक हलकों में सराहा जा रहा है।
कैसे हुआ उपराष्ट्रपति चुनाव?
भारत के 15वें उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 10 सितंबर 2025 को संसद भवन में संपन्न हुआ। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक मतदान हुआ। उसके बाद शाम 6 बजे मतगणना शुरू हुई और लगभग 7:30 बजे चुनाव परिणाम घोषित कर दिए गए। चुनाव में एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन को भारी बहुमत मिला और उन्होंने विपक्षी खेमे के बी. सुदर्शन रेड्डी को हराकर उपराष्ट्रपति पद हासिल किया।
राजनीतिक हलचलों पर नजर
बी. सुदर्शन रेड्डी की हार से विपक्ष को जरूर झटका लगा है, लेकिन उन्होंने जिस गरिमा के साथ हार को स्वीकार किया है, वह आने वाले समय में विपक्षी एकता और वैचारिक संघर्ष के लिए प्रेरणा का काम कर सकती है। यह चुनाव न केवल एक संवैधानिक पद की नियुक्ति थी, बल्कि यह देश की मौजूदा राजनीतिक दिशा का भी संकेत देता है।
निष्कर्ष
बी. सुदर्शन रेड्डी ने जिस शालीनता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सम्मान के साथ हार स्वीकार की, वह भारतीय राजनीति में एक सकारात्मक संदेश है। उनके बयान से स्पष्ट है कि वह हारकर भी हारे नहीं हैं, और उनके शब्द विपक्षी खेमे में नई ऊर्जा भर सकते हैं। वहीं, सी.पी. राधाकृष्णन की जीत एनडीए के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो आने वाले समय में संसदीय संवाद को नई दिशा दे सकती है।