मुंबई, 23 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की दुनिया में इस वक्त एक नई 'गोल्ड रश' यानी सोने की दौड़ मची हुई है। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और मेटा जैसी दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियां इस रेस में आगे रहने के लिए अरबों डॉलर खर्च कर रही हैं। लेकिन, एक हालिया रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि ये कंपनियां एआई से जुड़े भारी वित्तीय और नैतिक जोखिमों को चतुराई से दूसरों पर 'ऑफलोड' (स्थानांतरित) कर रही हैं।
जोखिम कम करने के तीन बड़े तरीके
1. पार्टनरशिप और निवेश का सहारा सीधे तौर पर भारी-भरकम मॉडल बनाने के बजाय, बड़ी कंपनियां छोटी एआई स्टार्टअप्स (जैसे OpenAI या Anthropic) में निवेश कर रही हैं। इससे अगर एआई का कोई मॉडल विफल होता है या कानूनी पचड़े में फंसता है, तो बड़ी कंपनी की साख सीधे तौर पर प्रभावित नहीं होती।
2. डेटा और कॉपीराइट का मुद्दा एआई मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए इंटरनेट से डेटा चोरी और कॉपीराइट उल्लंघन के मामले बढ़ रहे हैं। टेक कंपनियां अब ऐसे टूल्स पेश कर रही हैं जो यूजर्स को अपना डेटा इस्तेमाल करने की "अनुमति" देने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे भविष्य में होने वाले मुकदमों की जिम्मेदारी यूजर या प्लेटफॉर्म पर चली जाती है।
3. क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर की रणनीति माइक्रोसॉफ्ट और एमेजॉन जैसी कंपनियां एआई चलाने के लिए जरूरी कंप्यूटिंग पावर (Cloud) बेच रही हैं। इसका मतलब है कि एआई सफल हो या न हो, ये कंपनियां 'किराये' के रूप में मुनाफा कमाती रहेंगी।
पर्यावरण पर पड़ता बोझ
एआई को चलाने के लिए भारी मात्रा में बिजली और पानी की जरूरत होती है। टेक कंपनियां अक्सर कार्बन उत्सर्जन और ऊर्जा की खपत के आंकड़ों को सीधे अपनी रिपोर्ट में दिखाने के बजाय, इसे थर्ड-पार्टी वेंडर्स या डेटा सेंटर्स के खाते में डाल देती हैं।
आम जनता पर क्या होगा असर?
विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियां मुनाफा तो अपने पास रख रही हैं, लेकिन एआई के गलत इस्तेमाल, नौकरी जाने के डर और गलत जानकारी (Misinformation) फैलने जैसे सामाजिक जोखिमों की जिम्मेदारी सरकार और समाज पर छोड़ दी गई है।
निष्कर्ष: एआई बूम ने टेक जगत की कार्यप्रणाली बदल दी है। जहाँ इनोवेशन तेजी से हो रहा है, वहीं "रिस्क ऑफलोडिंग" की यह रणनीति भविष्य में गंभीर कानूनी और नियामक चुनौतियों को जन्म दे सकती है।